Monday, May 23, 2011

Alvida


कभी सोचता हूँ तो यूँ लगता है,
की जैसे बँध चुका हूँ मैं,
नहीं जा पाऊँगा छोड़ कर,
पर जा रहा हूँ और वो भी दूर,
शायद इस बार लौटना ना हो.

आज खाली किया सब मैने,
ले जा रहा हूँ जो अपना है,
छोड़ जा रहा हूँ सब पराया,
पर कुछ है जो ना जा पाएँगी मेरे साथ,
यादें है कुछ ऐसी, क्या करूँ मैं.

उसका चेहरा देखता हूँ,
इस आस से की ये आखरी बार ना हो,
पर सच तो ये है की यही होगी आखरी मुलाकात,
एक छोटा सा किस्सा यहीं होगा ख़त्म,
यहीं से शूरू होगी शूरूवात यादों की.

V.V.Vikram