This one is dedictaed to all those who suffer from Alzheimer's and the pain they have to go through along with their loved ones.
कुछ कहने की कोशिश ,
जुबां से अलफ़ाज़ निकलने को कतराते हैं ,
चेहरे पे इक उलझन नज़र आती है,
जैसे मानो आप कोई पहेली सुलझा रहे हो .
कुछ पढ़ने की कोशिश ,
किताब मानो इक अनसुनी जुबां में लिखी गयी हो ,
न लफ़्ज़ों की समझ , न कहानी का ज़हन ,
आपकी आँखों में एक धुंध सी नज़र आती है
कुछ करने की कोशिश ,
शुरू कहाँ करें , और खत्म कैसे हो ,
भटके हुए से लगते हैं अपने ही घर में ,
खिरकी से बाहर की दुनिया आपको बेहतर नज़र आती है
आप हैं यही पर हैं नहीं ,
कह दीजिये वो बातें अनकही ,
मुनासिब न होगा ये जानते हैं हम ,
एक आस से जीते हैं , ये आस ही सही
-Vikram
कुछ कहने की कोशिश ,
जुबां से अलफ़ाज़ निकलने को कतराते हैं ,
चेहरे पे इक उलझन नज़र आती है,
जैसे मानो आप कोई पहेली सुलझा रहे हो .
कुछ पढ़ने की कोशिश ,
किताब मानो इक अनसुनी जुबां में लिखी गयी हो ,
न लफ़्ज़ों की समझ , न कहानी का ज़हन ,
आपकी आँखों में एक धुंध सी नज़र आती है
कुछ करने की कोशिश ,
शुरू कहाँ करें , और खत्म कैसे हो ,
भटके हुए से लगते हैं अपने ही घर में ,
खिरकी से बाहर की दुनिया आपको बेहतर नज़र आती है
आप हैं यही पर हैं नहीं ,
कह दीजिये वो बातें अनकही ,
मुनासिब न होगा ये जानते हैं हम ,
एक आस से जीते हैं , ये आस ही सही
-Vikram