खाली खाली रातों से दोस्ती कर लेता हूँ
अब जब कभी अकेला सा लगता है तो आईना देख लेता हूँ
मुस्कुराकर दो लफ्ज़ खुद से कह लेता हूँ
देर से ठह़री निगाहों को बूँदों से भर लेता हूँ
खाली खाली रातों से दोस्ती कर लेता हूँ
दिल के सन्नाटो को खोलने की कोशिश करता हूँ
खुद से पहेली बना, खुद ही हल कर लेता हूँ
दिन गुज़ारता हूँ यूँही, रातों का इंतेज़ार कर लेता हून
खाली खाली रातों से फिर दोस्ती कर लेता हूँ
सोचता हूँ को वो अब आए तो इक तस्वीर बना लेता हूँ
ना आए वो तो चाँद को तस्वीर में उतार लेता हूँ
इक मैं ही क्या, इस जंगल में हैं वीरान सब हर पल यहाँ
यह सोच के ही अपने मॅन को कुछ कदर बहला लेता हून
है दिन तो क्या कुछ पल में होगी रात, बात फिर आगे बढ़े
खाली है तो क्या यह रात, है ज़रूरत इसे भी दोस्त की
खाली खाली रातों से दोस्ती मैं फिर कर लेता हूँ
V.V.Vikram
2 comments:
Too much boy!! the rest of my thoughts- offline!
One of the best of its kind!!
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